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Self Reliance in Energy Sector: दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के बाद भारत के लिए आने वाला दशक ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण साबित होने वाला है. अगले 10 साल में भारत को वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य में उस मुकाम को हासिल करना है, जिसकी बदौलत पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों यानी अनवीकरणीय या नॉन रिन्यूएबल ऊर्जा स्रोतों पर हमारी निर्भरता बेहद कम हो जाए. कच्चे तेल और कोयला जैसे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को धीरे-धीरे कम करनी होगी.
इस लक्ष्य को हासिल करने में ग्रीन हाइड्रोजन की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है. स्वच्छ ऊर्जा की ओर भारत के बढ़ते कदम के लिए ग्रीन हाइड्रोजन एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है. इसके जरिए अगले 25 साल में भारत को ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल हो सकती है. इसको लेकर मार्च महीने में अमेरिका के एक शीर्ष शोध संस्थान लॉरेंस बर्कले नेशनल लेबोरेटरी ने भी दावा किया था. 'द इंडिया एनर्जी एंड क्लाइमेट सेंटर' के साथ मिलकर 'आत्मनिर्भर भारत का रास्ता' नाम से प्रकाशित इस रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में तेजी से कदम उठा रहा है.
ग्रीन हाइड्रोजन की क्षमता का विस्तार
ग्रीन हाइड्रोजन की संभावना का पूरी तरह से विस्तार करना स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में ही एक बड़ा कदम है. दरअसल आने वाला वक्त ग्रीन हाइड्रोजन की ही है. इसमें भारत और चीन दोनों के पास अपार संभावनाएं हैं. हम जानते हैं कि दुनिया में जिन देशों के पास ऊर्जा संसाधनों की भरमार होती है, वे देश वैश्विक आर्थिक नीतियों और अर्थव्यवस्थाओं पर प्रभावी असर डालने की स्थिति में होते हैं. यही वजह है कि रूस, अमेरिका, ओपेक और अरब के देशों का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर लंबे वक्त से दबदबा रहा है. लेकिन ग्रीन हाइड्रोजन से इस परिदृश्य में बड़ा बदलाव आने की पूरी संभावना है. यहीं वजह है कि भारत ग्रीन हाइड्रोजन पर गंभीरता से काम कर रहा है.
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